Jain Sadhu and Sadhvi : जैन साधु और साध्वी कैसे रहते हैं स्वच्छ और तरोताजा , वो भी बिना नहाये

Jain Sadhu and Sadhvi : जैन धर्म के अनुसार साधु और साध्वी को बहुत ही कड़ा जीवन व्यतीत करना पड़ता है जो ये दीक्षा लेने के लिए कभी नहीं नहाते इसके बाद भी ये हमेशा तरोताजा , फ्रेश और साफ़ सुधरे लगते है। आखिरकार क्या हो सकती है इनके ना नहाने की वजह।

आइये जानते है इनके है इनके बारे में और भी रोमांचित बाते

जैन धर्म में पंथ 2 तरह के होते है(There are two types of sects in Jainism): Digambara and Shwetambara दोनों ही पंथो के साधु और साध्वियो को दीक्षा लेने के बाद कठोर जीवन जीते है जैन धर्म अपनाने वाले सही मायनो में मर्यादित और अनुशासित जीवन जीते है , जिसमे किसी भी तरह के सुविधापूर्ण और भौतिक संसाधनों से वांछित रहना पड़ता है , इसके अलावा Shwetambar साधु और साध्वियों के शरीर पर केवल एक पतला सा सूती का वस्त्र पहनते है।

इसके अलावा तो Digambara साधु तो वस्त्र भी धारण नहीं करते , लेकिन इस पर जैन पंथ की साध्वियां जरूर केवल एक सफ़ेद रंग का वस्त्र साड़ी के तौर पर पहनती है। चाहे कितनी ही कड़ाके की ठंड हो ये इसी प्रकार के वस्त्र धारण करते है , इसके अतिरिक्त तो दिगम्बर साधु बर्फीली ठण्ड में कोई भी वस्त्र धरण नही करते चाहे कोई भी हालत हो। लेकिन हां जो श्वेतांबर साधु होते है जो अपने साथ 14 चीजों में एक कंबल भी रखते है जोकि बहुत पतली सी होती है , इसे केवल वो सोते समय ही ओढते है।
ये जितने भी साध्वी और साधु है हर मौसम में जमीन पर ही सोते है , ये जमीन नंगी भी हो सकती है या फिर लकड़ी वाली भी हो सकती है इसके अलावा वो चटाई पर भी सो सकते है . इसके अतिरिक्त वो सुखी घास का भी इस्तेमाल कर सकते है सोने के लिए। हालाँकि इन साधु और साध्वियों की नींद बहुत आती है और ये सोते भी बहुत कम है. Digambara साधुओ के बारे में ये भी कहा जाता है की वो केवल करवट बहुत कम नींद लेते है।

आइये आपको बताते है जैन साधु और साध्वियां क्यों नही नहाते :

हां ये आपने बिल्कुल सही सुना की जैन धर्म के साधु और साध्वियां कभी नही नहाते क्योंकि उनका मानना है की उनके नहाने से सूक्ष्म जीवो का जीवन खतरे में पड सकता है इसी कारण की ये कभी नहीं नहाते और हमेशा ये मुँह पर कपडा लगा के रखते है ताकि कोई भी सूक्ष्म जीव मुँह के रास्ते शरीर में प्रवेश न कर पाए।

आमतौर पर स्नान मुख्य 2 तरह का होता है :

बाहरी और आंतरिक। जो सामन्य व्यक्ति होते है वो आमतौर पर पानी से नहाते है , लेकिन जैन साधु और साध्वियां आंतरिक स्नान करते है यानि की मन और विचारो की शुद्धि के ध्यान में बैठकर ही आंतरिक स्नान क्र लेते है। उनके नहाने का अर्थ है की अपने भावो की शुद्धि। ये जीवन काल इसी नियम का पालन करते है।
हां लेकिन साधु और साध्वी ये जरूर करते है की कुछ टाइम के अंतराल में गिला कपडा लेकर अपने शरीर को साफ़ करते है इसी से उनका शरीर हमेशा साफ़ शुद्ध और तरोताजा लगता है।
जैन भिक्षु सभी सभी तरह के भौतिक संसाधनों का परित्याग क्र देते है फिर इसके बाद बेहद सादगी में अपना पूरा जीवन गुजर देते है यह तक की विदेशो में भी रहने वाले जैन साधु और साध्वियां ठीक इसी प्रकार से कठिन जीवन व्यतीत करना होता है ,

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