बांग्लादेश में सरकार गिरने के बाद डॉ. यूनुस के नेतृत्व में नई अंतरिम सरकार का गठन हो गया था

इसके साथ ही कुछ दिनों के लिए राज्य की सत्ता में बना खालीपन ख़त्म हो गया है.

यह खालीपन शेख़ हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद पैदा हुआ था.

लेकिन देश में नई सरकार को शुरुआत से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. यह सरकार ऐसे समय में कार्यभार संभाल रही है जब देश में कानून व्यवस्था की स्थिति चरमरा गई

बांग्लादेश में अशांति का माहौल है. देश के आर्थिक हालात भी तनाव के दौर में है. इसके साथ ही राज्य की सुधार की भी बड़ी ज़रूरत है.

इस बीच बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार ने शपथ लेने के 16 घंटे के भीतर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों का बंटवारा कर होगा है.

कैबिनेट ने शुक्रवार को संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है. इसके मुताबिक़ सरकार के प्रधान सलाहकार मोहम्मद यूनुस रक्षा, शिक्षा, खाद्य, भूमि समेत कुल 27 मंत्रालयों के प्रभारी होंगे.

उनके साथ 13 अन्य सलाहकारों के बीच 13 मंत्रालयों का बंटवारा हुआ है.



नई सरकार में मो. तौहीद हुसैन को विदेश मंत्रालय की ज़िम्मेदारी मिली है.

रिटायर सैन्य अधिकारी एम सखावत हुसैन को गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारी मिली है.

जबकि बांग्लादेश बैंक के गवर्नर रहे सालेह उद्दीन अहमद को वित्त मंत्रालय सौंपा गया है.

वहीं मौजूदा छात्र आंदोलन में शामिल रहे ढाका विश्वविद्यालय के छात्र नाहिद इस्लाम को डाक, दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, औरआसिफ महमूद सजीब भुइयां को युवा और खेल मंत्रालय मिला है.

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इमेज कैप्शन,बांग्लादेश में कानून और व्यवस्था के बिगड़े हालात नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती है
कानून और व्यवस्था
सरकार गिरने के बाद ढाका के लगभग सभी पुलिसकर्मी ग़ैरमौजूद हैं. वहीं देश के कई इलाक़ों में पुलिस थानों पर हमले किये गए हैं.

लोगों ने मुख्य रूप से कानून और व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों पर लोगों के उपर गोलीबारी करने, गिरफ्तारी और यातना देने का आरोप लगाया है.

इसी के ख़िलाफ़ लोगों ने विरोध प्रदर्शन कर अपना गुस्सा ज़ाहिर किया है.



बांग्लादेश में एक बार फिर से थाने पर आक्रोशित भीड़ के हमले और इन हमलों में पुलिसकर्मियों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं.

कुल मिलाकर देश में कानून और व्यवस्था लागू कराने वाली एजेंसियों और आम जनता के बीच भरोसे का संकट साफ तौर पर दिख रहा है.

बांग्लादेश में हालिया आंदोलन के दौरान संपत्ति का बड़ा नुक़सान हुआ हैइमेज स्रोत,Getty Images
इमेज कैप्शन,बीते कुछ दिनों में बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर लूट और हिंसा हुई है
लूट, डकैती और तोड़ फोड़ का सिलसिला
राजनीतिक विश्लेषक ज़ुबैदा नसरीन का मानना है कि नई सरकार की सबसे बड़ी चुनौती मौजूदा हालात में कानून-व्यवस्था की स्थिति को सामान्य करना होगा.

उन्होंने कहा, ”यहां अब कानून लागू करने वाली एजेंसियां और लोग; कोई किसी पर भरोसा नहीं कर सकता. दोनों ही ख़ुद को असुरक्षित महसूस करते हैं. इनमें जल्द भरोसा बनाना होगा.”

उनके मुताबिक़ देश में कानून लागू करने वाली एजेंसियों में भ्रष्टाचार, लोगों को तकलीफ़ देने का सिलसिला और सेवा भाव की कमी का इतिहास बदला जाना चाहिए.

“यदि कहीं कोई अनियमितता है और उसे दूर कर लिया जाए तो लोगों का भरोसा लौट आएगा. इसके लिए सबसे पहले सरकार की मानसिकता को बदलना जरूरी है.”

ज़ुबैदा नसरीन का कहना है, “सरकार इन ताक़तों का इस्तेमाल करती है. अगर उसका तानाशाही रवैया बदलेगा तो सेना के भीतर भी सुधार होगा. इनका राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, ”

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सुधार की ज़रूरत
बांग्लादेश में लोगों ने भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग सहित कई जगहों पर सुधार की ज़रूरत महसूस की है. कई लोग देश में राजनीतिक सरकार के गठन से पहले इनमें सुधार की मांग कर रहे हैं.

पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक अहसान एच मंसूर का कहना है कि राज्य व्यवस्था में सभी संस्थानों को अब थोड़ा बहुत सुधारना होगा.

उनका कहना है, “यहां भ्रष्टाचार हमारी बड़ी समस्या है. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बने आयोग का क्या होगा, न्यायपालिका में क्या सुधार होगा, रैपिट एक्शन बटालियन को उतारा जाएगा या नहीं, कई बातें स्पष्ट करने की ज़रूरत है.”

दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक ज़ुबैदा नसरीन का मानना है कि सभी संवैधानिक संस्थाओं में सुधार किया जाना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें. तब यह राज्य को सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार जैसी चीज़ों से दूर रखेगा.

उनका कहना है, ” यहाँ राज्य प्रबंधन की संस्थाएँ स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकती थीं. वो राजनीतिक सरकार के प्रभाव में निष्पक्षता से काम नहीं कर पाए. इसलिए बदलाव यहीं से करना होगा.”



बांग्लादेश में आर्थिक सुधार की बड़ी ज़रूरत महसूस की जा रही है.इमेज स्रोत,Getty Images
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‘अर्थव्यवस्था में जल्द नतीजे की ज़रूरत’
हाल के वर्षों में बांग्लादेश में आर्थिक संकट की वजह से सार्वजनिक जीवन में असंतोष धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगा था.

छात्र आंदोलन मे

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